मेरे घुमक्कड़ी के शौक पर कोरोना और फिर कुछ निजी वजह से ब्रेक लगा है। वैसे सच कहूं तो मैंने अभी तक जितनी भी यात्राएं की हैं, उनमें से लगभग हर जगह को ठीक से एक्सप्लोर न कर पाने की कसक है, लेकिन कहते हैं कि कुछ न होने से कुछ होना अच्छा होता है, सो इसी कारण दो-तीन दिन का टूर बना लेता हूं। इस बार तो कमाल हो गया, कसौली की मेरी यात्रा मात्र पांच घंटे की रही, आप कह सकते हैं कि खंबा छूकर आ गया, लेकिन ट्वेंटी-ट्वेंटी क्रिकेट मैच की तर्ज पर हुए इस टूर ने मुझे मानसिक रूप से बहुत शांति दी। सोलो ट्रैवलिंग पसंद न होने पर भी यह अनुभव बहुत अच्छा रहा।  आइए इसके अनुभव आपसे साझा करता हूं।




चंडीगढ़ से साठ किलोमीटर दूर है कसौली 


चंडीगढ़ से हिमाचल प्रदेश के जिला सोलन का कसौली नगर करीब साठ किलोमीटर दूर है। फेसबुक से काफी समय से अपने जैसे ही घुमक्कड़ स्वभाव वाले कुंवर कुलदीप सिंह जी से मित्रता है। सो शाम के समय उन्हें फोन मिला दिया। कुलदीप जी भी अगले दिन मिलने का समय दे दिया।


मैं सुबह छह बजे चंडीगढ़ के सेक्टर 17 के बस अड्डे पहुंच चुका था, लेकिन वहां बताया गया कि कसौली के लिए बस सेक्टर 43 के स्टैंड से मिलेगी। वहां से सेक्टर 43 स्टैंड के लिए 25 रुपये में एसी बस मिल गई।


चंडीगढ़ के सेक्टर 43 बस अड्डे से शिमला को चली बस से शुरू हुआ सफर


सेक्टर 43 बस अड्डे से कसौली के लिए सीधी बस नहीं है। शिमला जाने वाली बस में बैठ धर्मपुर उतर वहां से कसौली की बस मिलती है। शिमला जाने वाली बस में बैठ गया। इस बस में मेरे पास ही दस से अधिक छात्र-छात्राओं का एक दल भी बैठा था। उन्होंने शोर मचाकर आसमान सिर पर उठा लिया।


दो घंटे बाद पहुंचे धर्मपुर


चंडीगढ़-शिमला हाईवे पर बस करीब दो घंटे बाद गांव धर्मपुर पहुंची। छात्र-छात्राओं का वह दल भी वहीं उतर गया। पता चला कि ये बालक भी हमारी तरह कसौली जा रहे हैं। खैर कुछ देर बाद एक मिनी बस आई और उसमे हम सब सवार हो गए। धर्मपुर से कसौली बारह किलोमीटर दूर है। बालक-बालिकाओं ने पहले की तरह धमाल काटना शुरू कर दिया था, लेकिन इस बस के कंडेक्टर साहब ने उन्हें नीचे उतारने की चेतावनी दे दी, जिससे सब अच्छे बच्चों की तरह चुप हो गए। 


पूरे शहर में नहीं जाते पर्यटकों के वाहन


धर्मपुर से कसौली की ओर बढ़ते हुए  पहाड़ शुरू हो जाते हैं। पौन घंटे की यात्रा के बाद हमारी बस स्टॉप पर आकर रूकी। यहां से आगे पर्यटकों के वाहन आगे ले जाने पर प्रतिबंध है। पार्किंग में उन्हें वाहन खड़े करने पड़ते हैं। फिर यहां से पैदल ही ऊपर की ओर चल पड़ते हैं। पहाड़ों की सुंदरता, ठंडी और स्वच्छ हवा यहां आने को सार्थक करने लगी थी। 


कुछ दूर चलने पर गोथिक शैली में 1853 में बने क्राइस्ट चर्च के दर्शन हुए। मेरे दस बजे पहुंचने पर चर्च बंद हो गया था और एक बजे खुलना था। मैंने कुलदीप जी को अपने आगमन की सूचना दी। उन्होंने कहा कि "आप अपर या लोअर माल घूमे, दो घंटे में मैं पहुंचता हूं।" मैंने नीचे की ओर न जाते हुए ऊपर चढ़ाई पर जाने का निर्णय लिया। 


सेना की छावनी है कसौली 


कसौली हमारी सेना की छावनी है। रास्ते में सड़क किनारे विभिन्न मोर्चों पर बलिदान देने वाले रणबाकुरों के फोटो लगे थे। साथ ही उनकी वीरता के बारे में बताया भी गया था। कहीं-कहीं ब्रिटिशकाल की इमारतों के दर्शन भी हो रहे थे। मैं कई पहाड़ी स्थलों पर गया हूं, यहां का शांत वातावरण कुछ अलग तरह का सुकून देने लगा था।